Tuesday, November 18, 2008

चलो घर चलें

चलो घर चलें......

Friday, October 24, 2008

सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन

एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।
इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।
बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।
विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।
बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।-------------------अगर आप भी कोई ब्लाग या वेबसाइट या वेब पोर्टल चलाते हैं और वेब पत्रकार संघर्ष समिति में शामिल होना चाहते हैं तो aloktomar@hotmail.com पर मेल करें। वेब माध्यमों से जुड़े लोगों का एक संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। आप सबकी भागीदारी का आह्वान है।

Friday, February 29, 2008

"With Malice towards None and All"

"हिन्दी में ना जाने क्यों विचारों का वो प्रवाह नही मिल पा रहा था, जिससे कि मै अपनी बात को सही से अभिव्यक्त कर पाता, इसी लिये काफ़ी अर्से बाद आज अंग्रेजी में पोस्ट कर रहा हूं।"
From the past one month or so I have been a silent spectator of the cold war which is happening in the hindi blogosphere? People are fighting it out hard with a volley of words with each other. One thing is for sure, no one is concerned about what he or she wants to achieve as an objective out of Independent blogging, rather they are concerned about what other people are doing or saying in their space?
I dont understand one thing, instead of staying focussed on what one wants to do, why are people getting distracted by things which should hardly matter to any one? Its a free world, any one is free to write anything? Usage of foul language is certainly something which one cant be appreciative of, but still there might be certain times where without venting out your ire in the form of abusive language you might not get the kind of satisfction that you want to achieve. I am not trying to be the devils advocate and start a new controversy but I am also not in complete favour of use of abuses. In the past there have been certain debates which are going no where? I have not been able to understand why this cold war is going on? On popularity charts if Bhadas supercedes any other personal or a group blog it shouldnt bother any one. We as people should rather concentrate on achieving the objectives of our own satisfaction out of blogging? These baseless or I should say needless controversies will not lead any of us any where? At the end of the day if one blog is closed there are loads of other ways? It might take people to get over with the jolt but sooner or later they might come back and this time may be with more vengeance. Who knows? Lately I have been my self very disappointed, and it kind of demotivated me to write anything.This is an illusionistic space why are we spoiling our own self by getting involved in these things. Are there lesser things to focus on? NO.Guys its time to grow up and think constructively. Dont get distracted by what ppl have to say about anyone. I certainly dont want to be a part of any controversy, it was just some thoughts which suddenly sparked off and I posted it "With Malice towards None and All"Just do it? And be cool.

Thanks
Ankit Mathur

Saturday, January 19, 2008

शून्य रूपये का नोट


ज़रा सोचिये, आप किसी काम से किसी सरकारी दफ़्तर में जायें और मेज़ की दूसरी ओर बैठा वो आलसी आदमी कहे कि जैसा कि उसने कहा था, आपका काम आज नहीं हो सकता, एक हफ़्ते बाद आना. आप जानते हैं कि वो चाहता है आप उसे रिश्‍वत दें लेकिन आपको समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये. क्या करेंगे आप ऐसी स्थिति में? आप उस पर चिल्लाना चाहते हैं, अपना क्रोध अभिव्यक्‍त करना चाहते हैं........उपाय ये है.

"Fifth Pillar India" एक ऐसी ग़ैर सरकारी संस्था जो ख़ास तौर पे भ्रष्‍टाचार से लड़ने के लिये ही बनाई गयी है. इस संस्था ने लगभग २,००,००० शून्य मूल्यवर्ग के नोट छापे हैं जो हू-ब-हू भारतीय चल-मुद्रा जैसे दिखते हैं. इस संस्था ने ये नोट आम जनता में बांटने शुरु भी कर दिये हैं..इस अपील के साथ कि अब जो कोई भी उनसे रिश्‍वत की मांग करे, उसे यही नोट दिये जायें.

इस संस्था ने अपना 30-days-30-district campaign 4 अगस्त को चेन्नई से शुरु किया जिसको नाम दिया गया "Freedom From Corruption". ये अन्दोलन ख़त्म हुआ 9 सितम्बर को. शून्य मूल्य वर्ग के नोट छापने से पहले इस संस्था ने चेन्नई के नामी गिरामी वकीलों से सलाह भी ली. इस नोट का रंग भारतीय मुद्रा के पचास के नोट जैसा है और आकार एक हज़ार रुपये नोट से थोड़ा बड़ा. समान्य से अलग, असली नोट पर जहां ’I promise to pay the bearer a sum of x rupees’ लिखा होता है, इस नोट पर ‘I promise neither to accept nor give bribes’ लिखा है.

Tuesday, January 15, 2008

नैनो के साईड इफ़ेक्ट्स!

तस्वीर पर क्लिक करना ना भूलें!
नैनो रानी बडी सयानी,बडे बडो को पिला दे पानी।
नौकरानियां हुई दीवानी, बोलें हमको चाहिये गाडी।
बोली बाबू दो एडवांस दोनो मिल कर करेंगे डांस।

नैनो के कमाल भईया टाटा साहब जाने।
आम, खास, नेता, भिखारी सभी हुए दीवाने।
नेताओं को लगता है मिलेगा नया मुद्दा।
पार्किंग बनेगी नये साल में बडा चुनावी मुद्दा।
इस बाजारी मौसम में चमक गया है टाटा।
खूब ही भैय़ा ज़ोर से मारा तुमने सबके चांटा।

Monday, January 14, 2008

बहुत कठिन है डगर पनघट की!

बहुत समय हुआ नौकरी बदलने के बारे में सोचे हुए,
तो सोचा कि क्यों न मार्केट में बोली लगवाई जाये और मार्केट के मिजाज़ को देखें।
लेकिन मार्केट में ससुरी इतनी मुर्दनी छाई हुई है कि पूछो मत,
कोई साला पैसा देने को राज़ी नही, तो कोई पोज़िशन ना दे।
कहीं कम्पनी इतनी छोटी कि हमारे यहां का रिसेप्शन भी उससे बड़ा।
कुछ कम्पनियों से पैसा अच्छा मिल रहा है, लेकिन साले बाण्ड भरने को कहते हैं।
सोचा था कि अच्छे प्रतिष्ठित ब्राण्ड के साथ जुड़ने के बाद आगे बढ़ने का रास्ता
आसान हो जायेगा।
लेकिन अब लगता है कि गलती कर बैठे थे।
समझ ही नही आ रहा है कि क्या किया जाये।
एक साहब से बाद हो रही थी,कन्ट्री हेड थे आपरेशन्स डिपार्टमेण्ट मे,
कहते हैं कि अरे आप वहां काम करते हैं?
मैने कहा जी हां, बोले हमे नही लगता कि आपके लायक कोई नौकरी हम दे पायेंगे।
मै कहना चाहते हुए भी नही कह पाया कि साले काम तो बता,
मै उसके लायक हूं या नही ये तो मुझे तेरे से ज़्यादा पता है।
खैर कोई बात नही, कुछ लोगो से बात पटरी पर बैठती नज़र आई
तो बोले कि शहर छोड़ना पड़ेगा। इतनी मुश्किल से तो बैंगलोर से
वापस दिल्ली आये थे अब तुम फ़िर भारत भ्रमण करवा दो।
कुल मिलाकर एक बात सामने आ रही है,
कि भले ही जाब मार्केट कितनी भी बूमिंग क्यो ना हो,
लेकिन जब आप स्वयं मार्केट में निकलते हैं तो
चीज़ें इतनी आसान होती नही हैं जितनी कि वे नज़र आती हैं।

धन्यवाद

अंकित माथुर...

Friday, January 11, 2008

निखिल द्विवेदी:उभरा एक नया सितारा


-अजय ब्रह्मात्मज
देश भर के बच्चे, किशोर और युवक फिल्में देख कर प्रभावित होते हैं। वे उनके नायकों की छवि मन में बसा लेते हैं कि मैं फलां स्टार की तरह बन जाऊं। जहां एक ओर आज देश के लाखों युवक शाहरुख खान बनना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर 20-25 साल पहले सभी के ख्वाबों में अमिताभ बच्न थे। उन्हीं दिनों इलाहाबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार के लड़के निखिल द्विवेदी ने भी सपना पाला। सपना था अमिताभ बच्चन बनने का। उसने कभी किसी से अपने सपने की बात इसलिए नहीं की, क्योंकि उसे यह मालूम था कि जिस परिवार और पृष्ठभूमि में उसकी परवरिश हो रही है, वहां अमिताभ बच्चन तो क्या, फिल्मों में जाने की बात करना भी अक्षम्य अपराध माना जाएगा! ऐसी ख्वाहिशों को कुचल दिया जाता है और माना जाता है कि लड़का भटक गया है। वैसे, आज भी स्थिति नहीं बदली है। आखिर कितने अभिनेता हिंदी प्रदेशों से आ पाए? क्या हिंदी प्रदेश के युवक किसी प्रकार से पिछड़े या अयोग्य हैं? नहीं, सच यही है कि फिल्म पेशे को अभी तक हिंदी प्रदेशों में सामाजिक मान्यता नहीं मिली है।
दिल में अपना सपना संजोए निखिल द्विवेदी पिता गोविंद द्विवेदी के साथ मुंबई आ गए। मुंबई महानगर में एक बस्ती है मुलुंड, जहां निखिल का कैशोर्य बीता। पिता की मर्जी के मुताबिक उन्होंने एमबीए की पढ़ाई की। बाद में एक बड़ी कंपनी में बिजनेस एग्जिक्यूटिव बने, लेकिन मन से फिल्म की बात नहीं गई। देश के लाखों युवकों से अलग निखिल ने अपने सपने को हमेशा हरा रखा और वे उसे दुनिया की नजरों से छिप कर सींचते भी रहे। इलाहाबाद में जो सपना अंकुराया था, वह वर्षो बाद मुंबई में फला-फूला। निखिल ने अपने पांव पर खड़े होने के बाद फिल्मों की तरफ रुख किया। लोगों से मुलाकातें हुई और एक नेटवर्किंग आरंभ हुई। इसे निखिल का आत्मविश्वास ही कहेंगे कि जब ई निवास ने उन्हें एक फिल्म में छोटी-सी भूमिका सौंपी, तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं हीरो का रोल करूंगा। सही मौके और बड़ी भूमिका के लिए निखिल प्रयत्नशील रहे। वक्त आया और ई निवास ने ही बुलाकर उन्हें माई नेम इज एंथनी गोंजाल्विस में हीरो का रोल दिया। हालांकि फिल्म मिलने के बाद भी संकट कम नहीं हुए। एक बार लगा कि फिल्म नहीं बन पाएगी। फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी अच्छी थी कि एक बड़ा स्टार इस फिल्म को करना चाहता था। इतना ही नहीं, एक बड़े बैनर ने ई निवास को सलाह दी कि निखिल को निकाल दो। सच तो यह है कि वह बैनर बड़ी रकम देकर स्क्रिप्ट भी खरीदने को तैयार था, लेकिन फिर भी निर्देशक ई निवास और उनके लेखक निखिल के साथ डटे रहे। दरअसल, उन्हें निखिल पर भरोसा था। निखिल ने आखिरकार साबित किया कि वे भरोसे के योग्य हैं। संयोग ऐसा बना कि शाहरुख खान भी निखिल के प्रशंसक बन गए। उन्होंने अपने बैनर को हिदायत दी कि निश्चित बजट में निखिल की फिल्म पूरी होनी चाहिए। अब माई नेम इज.. रिलीज के लिए तैयार है। इसके पोस्टर में दिखने वाला युवक बड़ी उम्मीद से दर्शकों को निहार रहा है। उसकी आंखों में सपने के साकार होने की चमक है। उसकी सफलता लाखों युवकों के लिए प्रेरणा बनेगी।

Thursday, January 10, 2008

टाटा का चांटा!

टाटा की अत्यधिक महत्वाकांक्षी एक लाख कीमत वाली कार पर से अंतत: आज
पर्दा उठ ही गया और सामने आई टाटा नैनो।अगर रतन टाटा की माने तो आज से
चार - पांच साल पहले एक परिवार को मुंबई में बारिश में भीगते हुए देख कर ये खयाल
आया कि क्यों ना एक कार ऐसी बनाई जाये जिससे आम आदमी भी अपने
रहन सहन के स्तर को बढता हुआ देख सके।यानि की निम्न मध्यम या
मध्यम वर्ग जो कि कार का सपना संजो कर तोरखता था लेकिन
उसे साकार नही कर पाता था।खैर टाटा की इस कार में कुछ खूबियां भी हैं।
मसलन दिखने में टाटा नैनो मारुति ८०० से छोटी है,लेकिन 21 प्रतिशत
ज़्यादा जगह रखती है।कार के डैश बोर्ड में एक स्पीडोमीटर, फ़्यूल गेज, आयल
और लाईट के इंडिकेटर हैं।कार में एडजस्टेबल सीट या रेक्लाईनिंग सीटें अभी नही हैं,
रेडियो भी नही है।शाक एब्ज़ार्बर्स भी काफ़ी आधारभूत स्तर के ही हैं।
इसमें 30 लिटर का फ़्यूल टैंक है, और चार स्पीड मैनुअल गीयर शिफ़्ट हैं।
नैनो के तीन माडलों में से एक में एयर कंडीशनिंग भी है, लेकिन उसमे
कोई पावर स्टीयरिंग नही होगा। इसमें आगे के डिस्क ब्रेक होंगे
और पीछे ड्रम ब्रेक तकनीक का प्रयोग किया गया है।
कम्पनी के दावे को यदि माने तो ये कार एक लीटर पेट्रोल में 23 कि० मी० चलेगी।
इस कार को टाटा ने मध्यम वर्गीय परिवार को ध्यान में रखते हुए डिज़ाईन किया है।
नैनो को डिज़ाईन करने में 500 से अधिक आटोमोबाईल, ईलेक्ट्रानिक्स एवं
एस्थेटिक्स एंजीनियरों की सहायता ली गई है।
कार का डिज़ाईन अभी तक की हैच बैक सेगमेंट में सबसे ज़्यादा
एयरो डाइनामिक है।कार की लंबाई 3.1 मीटर है, चौड़ाई 1.5 मीटर औरउंचाई 1.6 मीटर है।
कार में ट्यूब लेस टायरों का इस्तेमाल किया गया है, कार का ग्राऊंड क्लीयरेंस भी अच्छा है।
इस कार का ईंजन 2 सिलिंडर, 623 cc, मल्टी प्वाईंट फ़्यूल इंजेक्शन है।
इंजन को बूट स्पेस यानि कि पीछे की ओर रखा गया है, जिससे कि
पिछले पहियों को ज़्यादा पावर मिल सकेगी।
भारत में पहली बार 2 सिलिंडर, सिंगल बैलेंसर शैफ़्ट गैस इंजन इस्तेमाल किया गया है।
जो कि कार के माइलेज को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
लेकिन इंजन को ठंडा रखने के लिये एक एयर स्कूप देना भी
अति आवश्यक होता है जिस की गैर मौजूदगी नैनो में कुछ शुरुआती
दिक्कतें पैदा कर सकती है।सुरक्षात्मक नज़रिये से देखें तो भी ये एक
उत्तम कार की श्रेणी मेंरखी जा सकती है।
सम्पूर्ण शीट मेटल बाडी तथा impact resistant rods
के प्रयोग से गाड़ी में सुरक्षा का भी उचित ध्यान रखा गया है।
आने वाले कुछ समय में एक नया सेगमेंट बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने के लिये तैयार होगा।
ह्युन्दाई मोटर्स के एक अधिकारी की माने तो उनकी बिक्री पर अभी से इसका
प्रभाव पड़ता दिख रहा है।जगदीश खट्टर का कहना है कि अभी इस
पर कोई प्रतिक्रियात्मक टिप्पणीकरना बहुत जल्द बाज़ी होगी।
बजाज के अनुसार उन्हे कभी इस बात पर संदेह नही था कि टाटा एक लाख
की कीमत वाली कार बाज़ार में उतार सकती है या नही, वरन
उनका कहना है कि यह कार कितना मुनाफ़ा दिलायेगी टाटाको ये काबिले गौर बात होगी।
वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में इस कार का विरोध भी देखने को मिला
सिंगूर के आंदोलन रत लोगो की माने तो यह कार टाटा ने लोगो के खून से बनाई है।
कुल मिला कर इस कार से भारतीय बाज़ार में काफ़ी हलचल है।
शायद आने वाले समय में यातायात की समस्या और गहरा जाये।
धन्यवाद
अंकित माथुर...