हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा,
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा,
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे,
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा,
इबारत से गुनाहों तक की मंज़िल में है हंगामा,
ज़रा सी पी के आये तो बस महफ़िल में है हंगामा,
कभी बचपन जवानी और बुढ़ापे में है हंगामा,
ज़ेहन में है कभी तो फ़िर कभी दिल में है हंगामा,
कलम को खून में खुद के डुबोता हूं तो हंगामा,
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूं तो हंगामा,
जो मुझपर भी नहीं खुद की खबर वो है ज़माने पर,
मैं हंसता हूं तो हंगामा, मैं रोता हूं तो हंगामा,
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा,
ये जज़्बातों, मुलाकातों हसीं रातों का हंगामा,
जवानी के कयामत दौर में ये सोचते हैं सब,
ये हंगामे की बाते हैं या है बातों का हंगामा,
कभी कोई जो खुल कर हंस लिया दो पल तो हंगामा,
मैं उससे दूर था साज़िश है साज़िश है,
उसे बाहों में खुल कर कस लिया दो पल तो हंगामा,
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा॥
साभार: डा० कुमार विश्वास..