Saturday, January 19, 2008

शून्य रूपये का नोट


ज़रा सोचिये, आप किसी काम से किसी सरकारी दफ़्तर में जायें और मेज़ की दूसरी ओर बैठा वो आलसी आदमी कहे कि जैसा कि उसने कहा था, आपका काम आज नहीं हो सकता, एक हफ़्ते बाद आना. आप जानते हैं कि वो चाहता है आप उसे रिश्‍वत दें लेकिन आपको समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये. क्या करेंगे आप ऐसी स्थिति में? आप उस पर चिल्लाना चाहते हैं, अपना क्रोध अभिव्यक्‍त करना चाहते हैं........उपाय ये है.

"Fifth Pillar India" एक ऐसी ग़ैर सरकारी संस्था जो ख़ास तौर पे भ्रष्‍टाचार से लड़ने के लिये ही बनाई गयी है. इस संस्था ने लगभग २,००,००० शून्य मूल्यवर्ग के नोट छापे हैं जो हू-ब-हू भारतीय चल-मुद्रा जैसे दिखते हैं. इस संस्था ने ये नोट आम जनता में बांटने शुरु भी कर दिये हैं..इस अपील के साथ कि अब जो कोई भी उनसे रिश्‍वत की मांग करे, उसे यही नोट दिये जायें.

इस संस्था ने अपना 30-days-30-district campaign 4 अगस्त को चेन्नई से शुरु किया जिसको नाम दिया गया "Freedom From Corruption". ये अन्दोलन ख़त्म हुआ 9 सितम्बर को. शून्य मूल्य वर्ग के नोट छापने से पहले इस संस्था ने चेन्नई के नामी गिरामी वकीलों से सलाह भी ली. इस नोट का रंग भारतीय मुद्रा के पचास के नोट जैसा है और आकार एक हज़ार रुपये नोट से थोड़ा बड़ा. समान्य से अलग, असली नोट पर जहां ’I promise to pay the bearer a sum of x rupees’ लिखा होता है, इस नोट पर ‘I promise neither to accept nor give bribes’ लिखा है.

Tuesday, January 15, 2008

नैनो के साईड इफ़ेक्ट्स!

तस्वीर पर क्लिक करना ना भूलें!
नैनो रानी बडी सयानी,बडे बडो को पिला दे पानी।
नौकरानियां हुई दीवानी, बोलें हमको चाहिये गाडी।
बोली बाबू दो एडवांस दोनो मिल कर करेंगे डांस।

नैनो के कमाल भईया टाटा साहब जाने।
आम, खास, नेता, भिखारी सभी हुए दीवाने।
नेताओं को लगता है मिलेगा नया मुद्दा।
पार्किंग बनेगी नये साल में बडा चुनावी मुद्दा।
इस बाजारी मौसम में चमक गया है टाटा।
खूब ही भैय़ा ज़ोर से मारा तुमने सबके चांटा।

Monday, January 14, 2008

बहुत कठिन है डगर पनघट की!

बहुत समय हुआ नौकरी बदलने के बारे में सोचे हुए,
तो सोचा कि क्यों न मार्केट में बोली लगवाई जाये और मार्केट के मिजाज़ को देखें।
लेकिन मार्केट में ससुरी इतनी मुर्दनी छाई हुई है कि पूछो मत,
कोई साला पैसा देने को राज़ी नही, तो कोई पोज़िशन ना दे।
कहीं कम्पनी इतनी छोटी कि हमारे यहां का रिसेप्शन भी उससे बड़ा।
कुछ कम्पनियों से पैसा अच्छा मिल रहा है, लेकिन साले बाण्ड भरने को कहते हैं।
सोचा था कि अच्छे प्रतिष्ठित ब्राण्ड के साथ जुड़ने के बाद आगे बढ़ने का रास्ता
आसान हो जायेगा।
लेकिन अब लगता है कि गलती कर बैठे थे।
समझ ही नही आ रहा है कि क्या किया जाये।
एक साहब से बाद हो रही थी,कन्ट्री हेड थे आपरेशन्स डिपार्टमेण्ट मे,
कहते हैं कि अरे आप वहां काम करते हैं?
मैने कहा जी हां, बोले हमे नही लगता कि आपके लायक कोई नौकरी हम दे पायेंगे।
मै कहना चाहते हुए भी नही कह पाया कि साले काम तो बता,
मै उसके लायक हूं या नही ये तो मुझे तेरे से ज़्यादा पता है।
खैर कोई बात नही, कुछ लोगो से बात पटरी पर बैठती नज़र आई
तो बोले कि शहर छोड़ना पड़ेगा। इतनी मुश्किल से तो बैंगलोर से
वापस दिल्ली आये थे अब तुम फ़िर भारत भ्रमण करवा दो।
कुल मिलाकर एक बात सामने आ रही है,
कि भले ही जाब मार्केट कितनी भी बूमिंग क्यो ना हो,
लेकिन जब आप स्वयं मार्केट में निकलते हैं तो
चीज़ें इतनी आसान होती नही हैं जितनी कि वे नज़र आती हैं।

धन्यवाद

अंकित माथुर...

Friday, January 11, 2008

निखिल द्विवेदी:उभरा एक नया सितारा


-अजय ब्रह्मात्मज
देश भर के बच्चे, किशोर और युवक फिल्में देख कर प्रभावित होते हैं। वे उनके नायकों की छवि मन में बसा लेते हैं कि मैं फलां स्टार की तरह बन जाऊं। जहां एक ओर आज देश के लाखों युवक शाहरुख खान बनना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर 20-25 साल पहले सभी के ख्वाबों में अमिताभ बच्न थे। उन्हीं दिनों इलाहाबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार के लड़के निखिल द्विवेदी ने भी सपना पाला। सपना था अमिताभ बच्चन बनने का। उसने कभी किसी से अपने सपने की बात इसलिए नहीं की, क्योंकि उसे यह मालूम था कि जिस परिवार और पृष्ठभूमि में उसकी परवरिश हो रही है, वहां अमिताभ बच्चन तो क्या, फिल्मों में जाने की बात करना भी अक्षम्य अपराध माना जाएगा! ऐसी ख्वाहिशों को कुचल दिया जाता है और माना जाता है कि लड़का भटक गया है। वैसे, आज भी स्थिति नहीं बदली है। आखिर कितने अभिनेता हिंदी प्रदेशों से आ पाए? क्या हिंदी प्रदेश के युवक किसी प्रकार से पिछड़े या अयोग्य हैं? नहीं, सच यही है कि फिल्म पेशे को अभी तक हिंदी प्रदेशों में सामाजिक मान्यता नहीं मिली है।
दिल में अपना सपना संजोए निखिल द्विवेदी पिता गोविंद द्विवेदी के साथ मुंबई आ गए। मुंबई महानगर में एक बस्ती है मुलुंड, जहां निखिल का कैशोर्य बीता। पिता की मर्जी के मुताबिक उन्होंने एमबीए की पढ़ाई की। बाद में एक बड़ी कंपनी में बिजनेस एग्जिक्यूटिव बने, लेकिन मन से फिल्म की बात नहीं गई। देश के लाखों युवकों से अलग निखिल ने अपने सपने को हमेशा हरा रखा और वे उसे दुनिया की नजरों से छिप कर सींचते भी रहे। इलाहाबाद में जो सपना अंकुराया था, वह वर्षो बाद मुंबई में फला-फूला। निखिल ने अपने पांव पर खड़े होने के बाद फिल्मों की तरफ रुख किया। लोगों से मुलाकातें हुई और एक नेटवर्किंग आरंभ हुई। इसे निखिल का आत्मविश्वास ही कहेंगे कि जब ई निवास ने उन्हें एक फिल्म में छोटी-सी भूमिका सौंपी, तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं हीरो का रोल करूंगा। सही मौके और बड़ी भूमिका के लिए निखिल प्रयत्नशील रहे। वक्त आया और ई निवास ने ही बुलाकर उन्हें माई नेम इज एंथनी गोंजाल्विस में हीरो का रोल दिया। हालांकि फिल्म मिलने के बाद भी संकट कम नहीं हुए। एक बार लगा कि फिल्म नहीं बन पाएगी। फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी अच्छी थी कि एक बड़ा स्टार इस फिल्म को करना चाहता था। इतना ही नहीं, एक बड़े बैनर ने ई निवास को सलाह दी कि निखिल को निकाल दो। सच तो यह है कि वह बैनर बड़ी रकम देकर स्क्रिप्ट भी खरीदने को तैयार था, लेकिन फिर भी निर्देशक ई निवास और उनके लेखक निखिल के साथ डटे रहे। दरअसल, उन्हें निखिल पर भरोसा था। निखिल ने आखिरकार साबित किया कि वे भरोसे के योग्य हैं। संयोग ऐसा बना कि शाहरुख खान भी निखिल के प्रशंसक बन गए। उन्होंने अपने बैनर को हिदायत दी कि निश्चित बजट में निखिल की फिल्म पूरी होनी चाहिए। अब माई नेम इज.. रिलीज के लिए तैयार है। इसके पोस्टर में दिखने वाला युवक बड़ी उम्मीद से दर्शकों को निहार रहा है। उसकी आंखों में सपने के साकार होने की चमक है। उसकी सफलता लाखों युवकों के लिए प्रेरणा बनेगी।

Thursday, January 10, 2008

टाटा का चांटा!

टाटा की अत्यधिक महत्वाकांक्षी एक लाख कीमत वाली कार पर से अंतत: आज
पर्दा उठ ही गया और सामने आई टाटा नैनो।अगर रतन टाटा की माने तो आज से
चार - पांच साल पहले एक परिवार को मुंबई में बारिश में भीगते हुए देख कर ये खयाल
आया कि क्यों ना एक कार ऐसी बनाई जाये जिससे आम आदमी भी अपने
रहन सहन के स्तर को बढता हुआ देख सके।यानि की निम्न मध्यम या
मध्यम वर्ग जो कि कार का सपना संजो कर तोरखता था लेकिन
उसे साकार नही कर पाता था।खैर टाटा की इस कार में कुछ खूबियां भी हैं।
मसलन दिखने में टाटा नैनो मारुति ८०० से छोटी है,लेकिन 21 प्रतिशत
ज़्यादा जगह रखती है।कार के डैश बोर्ड में एक स्पीडोमीटर, फ़्यूल गेज, आयल
और लाईट के इंडिकेटर हैं।कार में एडजस्टेबल सीट या रेक्लाईनिंग सीटें अभी नही हैं,
रेडियो भी नही है।शाक एब्ज़ार्बर्स भी काफ़ी आधारभूत स्तर के ही हैं।
इसमें 30 लिटर का फ़्यूल टैंक है, और चार स्पीड मैनुअल गीयर शिफ़्ट हैं।
नैनो के तीन माडलों में से एक में एयर कंडीशनिंग भी है, लेकिन उसमे
कोई पावर स्टीयरिंग नही होगा। इसमें आगे के डिस्क ब्रेक होंगे
और पीछे ड्रम ब्रेक तकनीक का प्रयोग किया गया है।
कम्पनी के दावे को यदि माने तो ये कार एक लीटर पेट्रोल में 23 कि० मी० चलेगी।
इस कार को टाटा ने मध्यम वर्गीय परिवार को ध्यान में रखते हुए डिज़ाईन किया है।
नैनो को डिज़ाईन करने में 500 से अधिक आटोमोबाईल, ईलेक्ट्रानिक्स एवं
एस्थेटिक्स एंजीनियरों की सहायता ली गई है।
कार का डिज़ाईन अभी तक की हैच बैक सेगमेंट में सबसे ज़्यादा
एयरो डाइनामिक है।कार की लंबाई 3.1 मीटर है, चौड़ाई 1.5 मीटर औरउंचाई 1.6 मीटर है।
कार में ट्यूब लेस टायरों का इस्तेमाल किया गया है, कार का ग्राऊंड क्लीयरेंस भी अच्छा है।
इस कार का ईंजन 2 सिलिंडर, 623 cc, मल्टी प्वाईंट फ़्यूल इंजेक्शन है।
इंजन को बूट स्पेस यानि कि पीछे की ओर रखा गया है, जिससे कि
पिछले पहियों को ज़्यादा पावर मिल सकेगी।
भारत में पहली बार 2 सिलिंडर, सिंगल बैलेंसर शैफ़्ट गैस इंजन इस्तेमाल किया गया है।
जो कि कार के माइलेज को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
लेकिन इंजन को ठंडा रखने के लिये एक एयर स्कूप देना भी
अति आवश्यक होता है जिस की गैर मौजूदगी नैनो में कुछ शुरुआती
दिक्कतें पैदा कर सकती है।सुरक्षात्मक नज़रिये से देखें तो भी ये एक
उत्तम कार की श्रेणी मेंरखी जा सकती है।
सम्पूर्ण शीट मेटल बाडी तथा impact resistant rods
के प्रयोग से गाड़ी में सुरक्षा का भी उचित ध्यान रखा गया है।
आने वाले कुछ समय में एक नया सेगमेंट बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने के लिये तैयार होगा।
ह्युन्दाई मोटर्स के एक अधिकारी की माने तो उनकी बिक्री पर अभी से इसका
प्रभाव पड़ता दिख रहा है।जगदीश खट्टर का कहना है कि अभी इस
पर कोई प्रतिक्रियात्मक टिप्पणीकरना बहुत जल्द बाज़ी होगी।
बजाज के अनुसार उन्हे कभी इस बात पर संदेह नही था कि टाटा एक लाख
की कीमत वाली कार बाज़ार में उतार सकती है या नही, वरन
उनका कहना है कि यह कार कितना मुनाफ़ा दिलायेगी टाटाको ये काबिले गौर बात होगी।
वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में इस कार का विरोध भी देखने को मिला
सिंगूर के आंदोलन रत लोगो की माने तो यह कार टाटा ने लोगो के खून से बनाई है।
कुल मिला कर इस कार से भारतीय बाज़ार में काफ़ी हलचल है।
शायद आने वाले समय में यातायात की समस्या और गहरा जाये।
धन्यवाद
अंकित माथुर...