Monday, January 14, 2008

बहुत कठिन है डगर पनघट की!

बहुत समय हुआ नौकरी बदलने के बारे में सोचे हुए,
तो सोचा कि क्यों न मार्केट में बोली लगवाई जाये और मार्केट के मिजाज़ को देखें।
लेकिन मार्केट में ससुरी इतनी मुर्दनी छाई हुई है कि पूछो मत,
कोई साला पैसा देने को राज़ी नही, तो कोई पोज़िशन ना दे।
कहीं कम्पनी इतनी छोटी कि हमारे यहां का रिसेप्शन भी उससे बड़ा।
कुछ कम्पनियों से पैसा अच्छा मिल रहा है, लेकिन साले बाण्ड भरने को कहते हैं।
सोचा था कि अच्छे प्रतिष्ठित ब्राण्ड के साथ जुड़ने के बाद आगे बढ़ने का रास्ता
आसान हो जायेगा।
लेकिन अब लगता है कि गलती कर बैठे थे।
समझ ही नही आ रहा है कि क्या किया जाये।
एक साहब से बाद हो रही थी,कन्ट्री हेड थे आपरेशन्स डिपार्टमेण्ट मे,
कहते हैं कि अरे आप वहां काम करते हैं?
मैने कहा जी हां, बोले हमे नही लगता कि आपके लायक कोई नौकरी हम दे पायेंगे।
मै कहना चाहते हुए भी नही कह पाया कि साले काम तो बता,
मै उसके लायक हूं या नही ये तो मुझे तेरे से ज़्यादा पता है।
खैर कोई बात नही, कुछ लोगो से बात पटरी पर बैठती नज़र आई
तो बोले कि शहर छोड़ना पड़ेगा। इतनी मुश्किल से तो बैंगलोर से
वापस दिल्ली आये थे अब तुम फ़िर भारत भ्रमण करवा दो।
कुल मिलाकर एक बात सामने आ रही है,
कि भले ही जाब मार्केट कितनी भी बूमिंग क्यो ना हो,
लेकिन जब आप स्वयं मार्केट में निकलते हैं तो
चीज़ें इतनी आसान होती नही हैं जितनी कि वे नज़र आती हैं।

धन्यवाद

अंकित माथुर...

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