बैंगलोर से दिल्ली जाने की खुशी आज गम में तब्दील हुई नज़र आ रही है। एक साल। जी हां पूरा एक साल बैंगलोर में बिताने के बात आज दिल्ली जाने की सिर्फ़ सोच से एक अजीब सा एहसास हो रहा है।
एक साल कोई कम समय नही होता है, इस बात को अभी तक सिर्फ़ सुनता आया था। आज बंगलोर छोडते समय इस बात का मुकम्मल एह्सास हो रहा है।कभी भी किसी के भी साथ दारू पीने का प्लान, जब मर्ज़ी किसी को भी खडा कर देनाकि भाई चल सिगरेट पीने चल रहे हैं, कभी भी किसी वीकेण्ड पर टीम डिनर पर जाना।कभी चिकन काउन्टी , कभी फ़ोरम माल का पिज़्ज़ा हट, मैकडोनल्ड्स, साहिब सिंह सुल्तान, फ़िरंगी पानी, पैरामाऊन्ट रेस्टौरेण्ट आदि जगहों पर चले जाना।कभी किसी को कहना कि भाई आओ आज पूल खेलने चल रहे हैं, आज टेबल टेनिस खेलने का मन है।रोहित अक्केवार, रिषी भाई, ईश ठुकराल, दर्शन बिडप्पा, जाय दीप, अर्शद, सय्यद अफ़्फ़ान अली, आदि ना जाने कितने ही दोस्तो से बिछडने का आज गम सा मालूम दे रहा है।अमरीका से आने के बाद जब औरेकल ज्वाईन करा तो पहली बार महसूस हुआ था कि भाई हमारा भारत देश भी किसी से कम नही है।औटोमैटिक दरवाज़े, लिफ़्ट, सेंसर टेक्नोलोजी और भी ना जाने क्या क्या। हमारा आफ़िस सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से सम्पूर्ण है।मुझे आज भी अच्छी तरह याद है २८ जुलाई का वो दिन, जब मैं पहली बार औरेकल में अपने फ़ाईनल इन्टर्व्यू के लिये आया था। मेरी बात अपने मैनेजर के साथ हुई औरउसने मेरी सैलरी के बारे में बताया और बोला कि हम जल्दी ही आपका आफ़र लेटर रिलीज़ कर देंगे, आप अपने इंतज़ामात कर लें।कुछ ही दिन बाद मेरा आफ़र लेटर आ गया जिसमे कि 31 अगस्त 2006 को औरेकल ज्वाईन करने को कहा गया था। मैने भी चट्पट पिछली कम्पनी से इस्तीफ़ा दिया और चल पडा बैंगलोर की ओर। हालांकि मेरे लिये ये एक बेहद मुश्किल फ़ैसला था, चूंकि मेरे माता पिता की सेहत कुछ अच्छी नही रहती।रहने का भी कोई इंतज़ाम नही था, लेकिन फ़िर भी मैने हिम्मत की और आ गया बैंगलोर। आने के बाद एक महीना अपने भाई के साथ रहा।
यहां आकर महसूस किया कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में हम चाहे जहां भी चले जायें लेकिन भारतीयता और मानवीय सहिष्णुता का वर्चस्व आज भी कायम है।मेरे यहां के साथियों ने मेरी ज़बरद्स्त मदद की, मुझे ये एह्सास ही नही होने दिया कि मै एक अजनबी प्रदेश में आ गया हूं। टीना कुरियन, संगीता स्वामी, प्रीथम पूवानी, नागराज शर्मा, ईश ठुकराल आदि सभी मित्रो ने काफ़ी मदद की। कहना ना होगा कि सभी लोग टीम स्पिरिट से पूर्ण रूप से भरे हुए थे।एक के बाद एक क्वार्टर बीत गये, टार्गेट कभी अचीव हुए कभी नही हुए, लेकिन कभी भी नकारात्मक रवैये का सामना नही करना पडा।
सबसे उपर हमारे ग्रुप के जनरल मैनेजर राम शर्मा वाराणसी थे। उन्होने सभी का यथोचित मार्गदर्शन किया और सभी को एक सकारात्मक विचारधारा को ग्रहण करने का अवसर प्रदान किया।हर महीने एक बार मै दिल्ली आता था, जहां से सहारनपुर का रास्ता सिर्फ़ चार घण्टे का है।
पिछले साल रमज़ान के मुकद्दस महीने में मेरे सभी मुस्लिम दोस्त मुझे अपने साथ इफ़्तार और सहरी के लिये जबरन ले जाया करते थे। उनके प्यार और खुलूस ने मुझे जैसे बांध दिया था उन सभी के साथ। यहां मै अगर जकी भाई का ज़िक्र ना करू तो बात अधूरी सी रह जायेगी, ज़की भाई हैदराबाद से ताल्लुक रखते हैं और कदम ब कदम हम लोगो ने साथ साथ काम किया है।एक ज़की भाई ही थे जिन्होने मुझे पूल खेलना सिखाया था।अनुपम श्रीवास्तव एक और एसी शख्सियत थे जिनके बिना औरेकल मे एक साल पूरा करना काफी दुष्कर कार्य था। हालांकि ईश ठुकराल अब मैनेजर बन चुके हैं लेकिन फ़िर भी आपसी खुलूस और मोहब्बत का वो जज़्बा आज भी कायम है।उन्होने काम की बारीकियों से मुझे अवगत कराया और समझाया कि कैसे मै अपने कार्य को कुशलता पूर्वक पूर्ण कर सकता हूं। कुल मिलाकर इतना ही कह सकता हूं कि ये सिर्फ़ भारत वर्ष ही है,
जहां आपसी मेल जोल और सहिष्णुता का वर्चस्व आज भी कायम है।
एक साल कोई कम समय नही होता है, इस बात को अभी तक सिर्फ़ सुनता आया था। आज बंगलोर छोडते समय इस बात का मुकम्मल एह्सास हो रहा है।कभी भी किसी के भी साथ दारू पीने का प्लान, जब मर्ज़ी किसी को भी खडा कर देनाकि भाई चल सिगरेट पीने चल रहे हैं, कभी भी किसी वीकेण्ड पर टीम डिनर पर जाना।कभी चिकन काउन्टी , कभी फ़ोरम माल का पिज़्ज़ा हट, मैकडोनल्ड्स, साहिब सिंह सुल्तान, फ़िरंगी पानी, पैरामाऊन्ट रेस्टौरेण्ट आदि जगहों पर चले जाना।कभी किसी को कहना कि भाई आओ आज पूल खेलने चल रहे हैं, आज टेबल टेनिस खेलने का मन है।रोहित अक्केवार, रिषी भाई, ईश ठुकराल, दर्शन बिडप्पा, जाय दीप, अर्शद, सय्यद अफ़्फ़ान अली, आदि ना जाने कितने ही दोस्तो से बिछडने का आज गम सा मालूम दे रहा है।अमरीका से आने के बाद जब औरेकल ज्वाईन करा तो पहली बार महसूस हुआ था कि भाई हमारा भारत देश भी किसी से कम नही है।औटोमैटिक दरवाज़े, लिफ़्ट, सेंसर टेक्नोलोजी और भी ना जाने क्या क्या। हमारा आफ़िस सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से सम्पूर्ण है।मुझे आज भी अच्छी तरह याद है २८ जुलाई का वो दिन, जब मैं पहली बार औरेकल में अपने फ़ाईनल इन्टर्व्यू के लिये आया था। मेरी बात अपने मैनेजर के साथ हुई औरउसने मेरी सैलरी के बारे में बताया और बोला कि हम जल्दी ही आपका आफ़र लेटर रिलीज़ कर देंगे, आप अपने इंतज़ामात कर लें।कुछ ही दिन बाद मेरा आफ़र लेटर आ गया जिसमे कि 31 अगस्त 2006 को औरेकल ज्वाईन करने को कहा गया था। मैने भी चट्पट पिछली कम्पनी से इस्तीफ़ा दिया और चल पडा बैंगलोर की ओर। हालांकि मेरे लिये ये एक बेहद मुश्किल फ़ैसला था, चूंकि मेरे माता पिता की सेहत कुछ अच्छी नही रहती।रहने का भी कोई इंतज़ाम नही था, लेकिन फ़िर भी मैने हिम्मत की और आ गया बैंगलोर। आने के बाद एक महीना अपने भाई के साथ रहा।
यहां आकर महसूस किया कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में हम चाहे जहां भी चले जायें लेकिन भारतीयता और मानवीय सहिष्णुता का वर्चस्व आज भी कायम है।मेरे यहां के साथियों ने मेरी ज़बरद्स्त मदद की, मुझे ये एह्सास ही नही होने दिया कि मै एक अजनबी प्रदेश में आ गया हूं। टीना कुरियन, संगीता स्वामी, प्रीथम पूवानी, नागराज शर्मा, ईश ठुकराल आदि सभी मित्रो ने काफ़ी मदद की। कहना ना होगा कि सभी लोग टीम स्पिरिट से पूर्ण रूप से भरे हुए थे।एक के बाद एक क्वार्टर बीत गये, टार्गेट कभी अचीव हुए कभी नही हुए, लेकिन कभी भी नकारात्मक रवैये का सामना नही करना पडा।
सबसे उपर हमारे ग्रुप के जनरल मैनेजर राम शर्मा वाराणसी थे। उन्होने सभी का यथोचित मार्गदर्शन किया और सभी को एक सकारात्मक विचारधारा को ग्रहण करने का अवसर प्रदान किया।हर महीने एक बार मै दिल्ली आता था, जहां से सहारनपुर का रास्ता सिर्फ़ चार घण्टे का है।
पिछले साल रमज़ान के मुकद्दस महीने में मेरे सभी मुस्लिम दोस्त मुझे अपने साथ इफ़्तार और सहरी के लिये जबरन ले जाया करते थे। उनके प्यार और खुलूस ने मुझे जैसे बांध दिया था उन सभी के साथ। यहां मै अगर जकी भाई का ज़िक्र ना करू तो बात अधूरी सी रह जायेगी, ज़की भाई हैदराबाद से ताल्लुक रखते हैं और कदम ब कदम हम लोगो ने साथ साथ काम किया है।एक ज़की भाई ही थे जिन्होने मुझे पूल खेलना सिखाया था।अनुपम श्रीवास्तव एक और एसी शख्सियत थे जिनके बिना औरेकल मे एक साल पूरा करना काफी दुष्कर कार्य था। हालांकि ईश ठुकराल अब मैनेजर बन चुके हैं लेकिन फ़िर भी आपसी खुलूस और मोहब्बत का वो जज़्बा आज भी कायम है।उन्होने काम की बारीकियों से मुझे अवगत कराया और समझाया कि कैसे मै अपने कार्य को कुशलता पूर्वक पूर्ण कर सकता हूं। कुल मिलाकर इतना ही कह सकता हूं कि ये सिर्फ़ भारत वर्ष ही है,
जहां आपसी मेल जोल और सहिष्णुता का वर्चस्व आज भी कायम है।
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